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जयदेवी जयदेवी जय तडितादेवी ।
मेघ-स्फ़ुल्लिंगातुनि जन्मासी येई ॥
प्रकटूनी निमिषार्धे जरी लुप्त होई ।
रूद्राच्या नेत्रासम प्रदीप्त होई ॥१॥
गगनाच्या गर्भातूनी गर्वाने गर्जे ।
सृष्टीच्या सृजनाचे श्रृंगार सजे ॥
वाजे वाजे ढग-पखवाज वाजे ।
भाजे भाजे भानुमती वीज भाजे ॥२॥
कुणी विद्युल्लता कुणी म्हणे वीज ।
मेघधारांचे धारियले बीज ॥
कडकडता व्योमी हो ऐसा आवाज ।
प्रणवाचे हुंकार भरी कुणी द्वीज ॥३॥
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सारंग भणगे. २२ डिसेंबर २००८.
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