Thursday, January 19, 2012

नगमा

तेरी आँखोंसे चुराके नमी
लिख दी है मैंने ऐसी कविता,
पढ़के न बह जाए कही
तेरे नैनो से सावन की सरिता.

चुराके लबो से लाली ए कातिल
अल्फाज लिखे है ऐसे क्या कहू,
तुझे लगे माथे का सिंदूर
है मैंने बहाया रगों से लहू.

लेके तेरे गोरे रंग की स्याही
कुछ नगमा मैंने ऐसा लिख डाला,
सूरज डूबा जब पर्बत के पीछे
फैला है फिर भी चाहू ओर उजाला.

खुशबू चुराके सासों से तेरी
लिखी जो नज्मे हवाओ के ऊपर,
पढ़ने उसे हवाओ में उड़ते
धरती पे आये अम्बर से इश्वर.
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सारंग भणगे. (१९ जानेवारी २०१२)

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