Tuesday, April 24, 2012

बिखरे पन्ने


हर एक पन्ने पे शुरू एक नयी किताब है;
हर एक याद एक पुरा हुआ ख्वाब है.

बिखरे है पन्ने या सुलझे है कई सवाल;
हर पन्ने पे लिखा शायद कोई जवाब है

है पड़ी कितनी सारी बंद किताबे दुकान में;
बिखरे पन्ने याने जैसे खुली हुई किताब है

खुला हूँ ऐसे मै जैसे खुला असमान, वर्ना
लोगो के चहरोंपे जाने कितने नकाब है.

पन्ने होंगे बिखरे हुए हुजुर ये आपके लिए
मेरे लिए तो वो मेरी साँसे अजी जनाब है
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सारंग भणगे (२४ एप्रिल २०१२)

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