थाप पडली मृदंग वाजला,
थेंब पङता मृद्गंध लाजला।
बोटे हलली वीणा झंकारली,
सुमनांच्या वेली पर्णे शहारली।
ओठ स्फुरले पावा घुमला,
आम्रराई रावा घुमला।
किणकिण घंटा आतुर देवळे,
झिळमिळ हलले अंकुर कोवळे।
छुमछुम पैन्जण पाय थरकले,
लपलप लाटा तोय हरखले।
कीर्तनाचे रंगी झांज पखवाज,
सृष्टीमंदिरी अनाहत आवाज।
थेंब पङता मृद्गंध लाजला।
बोटे हलली वीणा झंकारली,
सुमनांच्या वेली पर्णे शहारली।
ओठ स्फुरले पावा घुमला,
आम्रराई रावा घुमला।
किणकिण घंटा आतुर देवळे,
झिळमिळ हलले अंकुर कोवळे।
छुमछुम पैन्जण पाय थरकले,
लपलप लाटा तोय हरखले।
कीर्तनाचे रंगी झांज पखवाज,
सृष्टीमंदिरी अनाहत आवाज।
1 comment:
Tu to shayar ho gaya re.....
very poetic... very much pure!!
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